माँ सिद्धिदात्री की कहानी हिंदी में Maa Siddhidaatri Ki Kahani Hindi Me



माँ दुर्गा के 9 अवतारों की कहानियाँ (सिद्धिदात्री)Maa Durga Ke 9 Avtaaron Ki Kahaniyan (Siddhidaatri)

माँ सिद्धिदात्री की कहानी हिंदी में Maa Siddhidaatri Ki Kahani Hindi Me

माँ सिद्धिदात्री
माँ सिद्धिदात्री की कहानी हिंदी में Maa Siddhidaatri Ki Kahani Hindi Me
माँ सिद्धिदात्री की कहानी हिंदी में Maa Siddhidaatri Ki Kahani Hindi Me
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है, या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
माता दुर्गा के नौवे रूप का नाम सिद्धिदात्री है। उनका नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें सिद्धि प्रदान करने की माता कहा जाता है। माता सिद्धिदात्री के अनुकम्पा से ही शिवजी को अर्धानारिश्वार का रूप मिला। उनका वाहन सिंह है और उनका आसन है कमल का फूल।










उनके ऊपरी दाहिने हाथ में एक गदा और निचले दाहिने हाथ में चक्रम रखती है। माता अपने ऊपरी बाएं हाथ में एक कमल का फूल और निचले बाएं हाथ में एक शंख रखती हैं। माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों की सभी मनोकाम्नाओं को सिद्धि देती हैं।

मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें जाती है।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।

 इनके नाम इस प्रकार हैं -
 1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि

मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।









मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करें। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

 सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।

मां के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।









इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए।

Stories of 9 incarnations of Maa Durga (Siddhidatri)

 Siddhidatri
माँ सिद्धिदात्री की कहानी हिंदी में Maa Siddhidaatri Ki Kahani Hindi Me
माँ सिद्धिदात्री की कहानी हिंदी में Maa Siddhidaatri Ki Kahani Hindi Me

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

Ya Devi Sarvabhuteshu Maa Siddhidatri Rupena Sanstita I
Namastasai namastasai namastasyaai namo nam: II

Meaning: O Maa! Ambe, who is known everywhere and known as Maa Siddhidatri, I salute you repeatedly, or I salute you again and again. O Maa, make me your blessing.

The ninth form of Mata Durga is named Siddhidatri. Her name is because she is called the Maa of granting accomplishment. Due to the compassion of Maa Siddhidatri, Shivji got the form of Ardhanarisvara. Her vehicle is a lion and his seat is a lotus flower.

She holds a mace in his upper right hand and Chakram in the lower right hand. Maa holds a lotus flower in her upper left hand and a conch in her lower left hand. Mata Siddhidatri gives success to all the wishes of her devotees.

The ninth power of Maa Durga is named Siddhidatri. This is proven to give all kinds of attainments. They are worshiped on the ninth day of Navratri-worship. On this day, a seeker who performs spiritual practice with full practice and complete devotion gets all the attainments. Nothing in the world remains inaccessible to him. The ability to get complete victory over the universe comes in it.

 According to the Markandeya Purana, Anima, Mahima, Garima, Laghima, Attainment, Prakamya, Ishita and Vashishta - these are the eight siddhis. This number is stated to be eighteen in the Sri Krishna birth section of the Brahmavaivartpurana.

 Their names are as follows -

 1. Anima 2. Laghima 3. Prapti 4. Prakamya 5. Mahima 6. Isihtva, Vashitva 7. Sarvakamavasayita 8. Sarvagatva 9. Doorshravan 10. Parkaypraveshan 11. Vakasiddhi 12. Kalpavrikshatva 13. Srishti 14. Sangharkaransamarthya 15. Amrattva 16. Sarvanyaykattva 17. Bhawana 18. Siddhi

 1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि

Maa Siddhidatri is able to provide all these siddhis to devotees and seekers. According to Devipuran, Lord Shiva had attained these siddhis only by his grace. Due to his compassion, half the body of Lord Shiva was that of the Goddess. That is why he became famous in the world by the name 'Ardhanarishwar'.

Maa Siddhidatri is of four arms. The lion is his conveyance. They are also situated on the lotus flower. There is lotus flower in his lower right hand. It is the duty of every human being to constantly try to get the blessings of Maa Siddhidatri. Proceeding towards their worship. By his grace, he can attain salvation by being oblivious to the world and enjoying all the happiness.

Maa Siddhidatri is the last among the Navadurga. While worshiping the other eight Durga worshipers according to the classical law, the devotees worship them on the ninth day of Durga Puja. After completing the worship of these Siddhidatri Maa, all the wishes of devotees and seekers, cosmic and otherworldly, are fulfilled.

 There is no such desire left within the favored devotee of Siddhidatri Maa, which she wants to fulfill. The ultimate connection of Maa Bhagwati becomes her all. After attaining this ultimate position, he no longer needs any other thing.

 In order to achieve this harmony of the feet of the Maa, we should worship them regularly. Maa Bhagwati is going to be remembered, meditated, worshiped, taking us to the real ultimate peaceful nectar by realizing the impermanence of this world.

 By his worship, the native gets all the siddhis and other siddhis like Anima, Ladhima, Attainment, Prakamya, Mahima, Ishita, Sarvakamavasayita, Distant Hearing, Parakama Pravesh, Vakasiddha, Immortality, Siddhi etc. In today's era, no one can do such austere tenacity, but by chanting, austerity, worshiping according to one's own strength, something becomes an object of the grace of the Maa. This verse worthy of worship for every common man is simple and clear. To get devotion to Maa Jagadambe, it should be memorized and chanted on Navami on Navami.

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